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HOLIDAY NOTICE 17-01-2019

सिखों के नामधारी संप्रदाय के लोग कूका भी कहलाते हैं।। इसकी शुरुआत 1840 ईस्वी में हुई थी इसको प्रारम्भ करने का श्रेय सेन साहब अर्थात भगत जहवाहर मल को जाता है इसको बालक सिंह तथा उसके अनुयायी रामसिंह ने नेतृत्व किया थालोगों के सशस्त्र विद्रोह को कूका विद्रोह के नाम से पुकारा जाता है। गुरु रामसिंहजी के नेतृत्व में कूका विद्रोह हुआ। कूके लोगों ने पूरे पंजाब को बाईस जिलों में बाँटकर अपनी समानांतर सरकार बना डाली। कूके वीरों की संख्या सात लाख से ऊपर थी। अधूरी तैयारी में ही विद्रोह भड़क उठा और इसी कारण वह दबा दिया गया। कूका विद्रोह पर भारत की स्वतंत्रता के लिए नामधारी सिखों द्वारा चलाए गए कूका आंदोलन के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे। नामधारी सिखों की कुर्बानियों को जंग-ए-आजादी के ऐतिहासिक पन्नों में कूका लहर के नाम से अंकित किया गया है।सतगुरु राम सिंह ने विश्व में पहली बार शांतिमय आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए सहयोग संवेदनशील आंदोलन का आगाज किया। जब अंग्रेजों ने धर्म के नाम पर लोगों को लड़ने व गुलामी का अहसास करवाने के लिए पंजाब में जगह-जगह गौ वध के लिए बूचड़खाने खोले, तब नामधारी सिखों ने इसका बड़ा विरोध किया व सौ नामधारी सिखों ने 15 जून 1871 को अमृतसर व 15 जुलाई 1871 को रायकोट बूचड़खाने पर धावा बोल कर गायों को मुक्त करवाया। इस बगावत के जुर्म में 5 अगस्त 1871 को तीन नामधारी सिक्खों को रायकोट, 15 दिसम्बर 1871 को चार नामधारी सिखों को अमृतसर व दो नाम धारी सिखों को 26 नवम्बर 1871 को लुधियाना में बट के वृक्ष से बांधकर सरेआम फांसी देकर शहीद कर दिया गया।